यहाँ घटना दिल्ली के एक गाँव के कुएं का भूत की है :- The incident here is of the ghost of a village well in Delhi.
एक दिन शाम को पहुंचे , तो इधर उधर की बात होते होते भूत प्रेत पर जाकर रूक गयी , भूत प्रेत का नाम सुनते ही उन्होने अपनी शौर्यगाथाएं सुनानी शुरू की। फलाने जगह में भूत के भय से जाने से लोग डरते हैं , मैं वहां रातभर रहा , फलाने जगह पर ये किया , वो किया और हम सभी उनके हिम्मत के आगे नतमस्तक थे। मेरी मम्मी ने एक दो बार रात के समय इस तरह की बातें न करने की याद भी दिलायी , पर वो नहीं माने ‘नहीं , चाचीजी , भूत प्रेत कुछ होता ही नहीं है , वैसे ही मन का वहम् है ये’ और न जाने कहां कहां के ऐसे वैसे किस्से सुनाते ही रहे।
उस दिन खाते पीते कुछ अधिक ही देर हो गयी थी , रात के ग्यारह बज गए थे , गांव में काफी सन्नाटा हो जाता है। उस घर के छत से आवाज दे देकर बच्चे बार बार बुला रहे थे । सामने के रास्ते से जाने से कई मोड पड जाने से उनका घर हमारे घर से कुछ दूर पड जाता था , पर खेत से होकर एक शार्टकट रास्ता था । हमलोग अक्सर उसी रास्ते से जाते आते थे , उन्होने भी उस दिन उसी रास्ते से जाने का निश्चय किया। पीछे के दरवाजे से उन्हें भेजकर हमलोग दरवाजा बंद करके अंदर अपने अपने कामों में लग गए। अचानक मेरी छोटी बहन के दिमाग में क्या आया , छत पर जाकर देखने लगी कि वे उनके घर पहुंचे या नहीं ? अंधेरा काफी था , मेरी बहन को कुछ भी दिखाई नहीं दिया , वह छत से लौटने वाली ही थी कि उसे महसूस हुआ कि कोई दौडकर हमारे बगान में आया और सामने नीम के पेड के नीचे छुप गया।
* मेरी बहन ने पूछा ‘कौन है ?‘
* उनकी आवाज आयी ‘मैं हूं’
* ‘आप चाचाजी के यहां गए नहीं ?’
‘* खेत में कुएं के पास कोई बैठा हुआ है’
गांव में रात के अंधेरे में चोरों का ही आतंक रहता है , उनकी इस बात को सुनकर हमलोगों को चोर के होने का ही अंदेशा हुआ , जल्दी जल्दी पिछवाडे का दरवाजा खोला गया। पूछने पर उन्होने हमारे अंदेशे को गलत बताते हुए कहा कि वह आदमी नहीं , भूत प्रेत जैसा कुछ है , क्यूंकि कुएं के पास उसकी दो लाल लाल आंखे चमक रही हैं। तब जाकर हमलोगों को ध्यान आया कि कुएं के पास खेत में पानी पटानेवाला डीजल पंप रखा है और उसमें ही दो लाल बत्तियां जलती हैं। जब उन्हें यह बात बताया गया तो उन्होने एकदम से झेंपकर कहा ‘ओह ! हम तो उससे डर खा गए’ ।
बेचारे कर भी क्या सकते थे , इस डर खाने की कहानी ने तुरंत बखानी गई उनकी निडरता की कहानियों के पोल को खोल दिया था। फिर थोडी ही देर बाद वे चले गए , और हमारे घर के माहौल की तो पूछिए मत , हमलोगों को तो बस हंसने का एक बहाना मिल गया था।

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